Friday 6 April, 2012

"वो मुझे याद कर रही होगी .."

धड़कन तो उसकी भी थम सी गयी होगी,
वो मुझको ख़त लिखने के रास्ते ढूंढ़ रही होगी,
कभी "माँ" कभी "बाप" कभी "भाई" को समझा रही होगी,
वो मुझसे एक दफे बात करने के बहाने ढूंड रही होगी,
शिकायत है उसके घरवालो को की आजकल पानी नमकीन है,
उन्हें क्या पता वो "घाघर" आंसुओं से भर रही होगी,
महिना बीत गया एक दुसरे से गुफ्तगू किये हुए,
वो कुछ आखरी खूबसूरत बातों को याद कर रही होगी,
या खुदा तुझे बहुत गुरुर है न तेरे खुदा होने पर,
फिर कर उसकी इबादत कबूल जिसमे वो मेरा नाम ले रही होगी.......  

Sunday 25 March, 2012

मेरी तालीम, तालीम-ए-मोह्हबत है, यह तू क्यों नहीं समझती.....

मेरा इश्क मंसूब-ए-वफ़ा है, यह तू क्यों नहीं समझती,
मेरी तालीम, तालीम-ए-मोह्हबत है, यह तू क्यों नहीं समझती,

खेलेगी तेरे दिल के साथ जी भर के, मुस्कुराते हुए,
मतलबी है यह सारी दुनिया, यह तू क्यों नहीं समझती,

चाहत है की तुझको छुपा के रखूं आँखों में अपनी,
बगावत के लिए तैयार है ज़माना, यह तू क्यों नहीं समझती,

जब जब तुझे देखा तब तब तेरी इबादत की है मैंने,
मेरी मोह्हबत पाक मोह्हबत है, यह तू क्यों नहीं समझती,

अब ख़त्म भी कर अपने हुस्न की नुमाइश करना महफिलों में,
पिघल जायेगा मोम की तरह हुस्न तेरा, यह तू क्यों नहीं समझती......

बड़ी दिलचस्प मोह्हबत बयां की उसने.....

निगाह मिलते ही निगाह झुका ली उसने,
बड़ी दिलचस्प मोह्हबत बयां की उसने,

लडखडा रहें हैं जबसे मिलें है उनसे,
लगता है आँखों से पिला दी उसने,

बुझे चिराग दिल के फिर से जल उठे,
यह किस तरह की हवा चला दी उसने,

दरो-दीवार पर लिखा लहू से नाम मेरा,
बड़ी खूबसूरत सी वफ़ा की उसने.......

तेरे साथ गुजारने को एक रात मिल जाये,.....

तेरे साथ गुजारने को एक रात मिल जाये,
चाँद को जलाने के लिए तेरा रुखसार मिल जाये,
यह जो जाम बात करता है मदहोशी की बार बार,
जवाब देने को इसे, तुझसे मेरी निगाहें मिल जाये,
बहुत खुश होती है यह हवा अँधेरा करने पर,
तेरे चेहरे के चिराग से उलझे तो इसे पता चल जाये,
जब तू चले बलखाते हुए ज़मीन पर,
तो फलक ज़मीन से बेहिसाब जल जाये,
जब तू अंगडाई ले अपने शबिस्तान मे कभी कभी,
तो बहार तेरे घर में आने को मचल जाये,
कुछ इतनी खूबसूरत बनावट है उसके बदन की "अंकित",
की जिससे लिपटे वो,उसे जन्नत मिल जाये.......

कोई बतलाये में खुद को क़यामत कैसे करूँ.....

करूँ भी या न करूँ, इस सोच में हूँ की,
उससे इकरार-ए-वफ़ा कैसे करूँ,

ना जाने कब उसके ज़ेहन में सियासत मचल जाये,
आखिर में उसपे भरोसा कैसे करूँ,

अभी अभी तो एक दर्द से उभरा है दिल मेरा,
फिर से इसे जख्मो के हवाले कैसे करूँ,

सुना है वो फिरसे करेगा मोह्हबत इस जिंदगी के बाद,
कोई बतलाये में खुद को क़यामत कैसे करूँ......

यहाँ मंसूबें बदलते ही लोग दोस्त बदल लेते हैं.....

मंजिल पाने की तलब में हमसफ़र बदल लेते हैं,
यहाँ लोग कदम कदम पर रास्ता बदल लेते हैं,

उससे कहदो की ज़रा सोच समझकर लगाये दिल किसी से,
वक़्त गुजरता नहीं की लोग दिल बदल लेते हैं,

एक महखाने से उठे तो दुसरे में जा बेठे,
पैमाने के साथ साथ लोग साकी बदल लेते हैं,

मत कर किसी की दोस्ती का यकीन इस ज़ालिम दुनिया में "अंकित",
यहाँ मंसूबें बदलते ही लोग दोस्त बदल लेते हैं......

पूरी कायनात में तुझसे खूबसूरत कुछ भी नहीं.....

ना आसमान ना सितारे और ना यह चाँद,
पूरी कायनात में तुझसे खूबसूरत कुछ भी नहीं,

महकाने की बात करूँ या करूँ शराब की,
जो सुरूर तेरी आँखों में है, वो सुरूर कहीं भी नहीं,

पायल की रुनझुन हो या फिर कंगन की खनक,
जो मोह्हबत तेरी ख़ामोशी में है, वो कहीं भी नहीं,

अंदाज़ ए हूर हो या फिर नूर ए चाँद,
जो सादगी तेरे चेहरे में है वो कहीं भी नहीं,

काली सी घनी रात हो या फिर कोई चांदनी रात,
तेरी जुल्फों के सायें से खूबसूरत कुछ भी नहीं,

बहारों का मौसम हो या फिर किसी कलि का खिलना,
तेरे लहजे से मासूम इस जहाँ में कुछ भी नहीं.......

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